अबके बरस भेज भैया को बाबुल, सावन में लीजो बुलाय रे
लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियाँ , दीजो संदेसा भिजाय रे
अंबुवा तले फिर से झूले पड़ेंगे, रिमझिम पड़ेंगी फुहारें
लौटेंगी फिर तेरे आँगन में बाबुल, सावन की ठंडी बहारें
छलके नयन मोरा कसके रे जियरा, बचपन की जब याद आए रे
अबके बरस भेज भैया को बाबुल
बैरन जवानी ने छीने खिलौने, और मेरी गुड़िया चुराई
बाबुल थी मैं तेरे नाज़ों की पाली, फिर क्यूँ हुई मैं पराई
बीते रे जुग, कोई चिठिया ना पाती, ना कोई नैहर से आए रे
अबके बरस भेज भैया को बाबुल … |
abake baras bhej bhaiyaa ko baabul, saavan me.n liijo bulaay re
lauTe.ngii jab mere bachapan kii sakhiyaa.N, diijo sa.ndesaa bhijaay re
a.mbuvaa tale phir se jhuule pa.De.nge, rimajhim pa.De.ngii phuhaare.n
lauTe.ngii phir tere aa.Ngan me.n baabul, saavan kii Tha.nDii bahaare.n
chhalake nayan moraa kasake re jiyaraa, bachapan kii jab yaad aa_e re
abake baras bhej bhaiyaa ko baabul
bairan javaanii ne chhiine khilaune, aur merii gu.Diyaa churaa_ii
baabul thii mai.n tere naazo.n kii paalii, phir kyuu.N hu_ii mai.n paraa_ii
biite re jug, ko_ii chiThiyaa naa paatii, naa ko_ii naihar se aa_e re
abake baras bhej bhaiyaa ko baabul … |
बहुत ही मारमिक शब्द रचना शब्दो के जादूगर शेलेन्द्र जी की
गाने के लेखन में ग़लती है क्रप्या ग़लती को सही करके लिखें, लोटेंगीं जब मेरे बचपन की, इस लाईन में ” साथियाँ ” नहीं लिखा गया है आपसे निवेदन है कि जल्द सुधार करें।
आपका
पप्पू
dhanyavaad. ab line poori hai – लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियाँ , दीजो संदेसा भिजाय रे ..
बैरन जवानी ने ….
पस्त करों द्वारा सुरबद्ध चक्की में पिसकर निकलता आटा, अनाजरूपी उस विरहिणी की जिजीविषा को प्रकट कर रहा है जिसके मनश्पटल पर संजोई शैशवस्था की स्वर्णिम स्मृतियां रेत की तरह मुठ्ठी से फिसल रही हैं। निसर्ग अंक में पल्लवित किन्तु नियति दंशवश सजायाफ्ता विरहिणी का प्रतिपल एक-एक युग के समान प्रतीत होता है, जिसे गज की तरह नैहर की माटी धारण करने की तीव्र उत्कण्ठा है। जो संदेशवाहक या पत्र की प्रतीक्षा में बाती की तरह जल रही है। मर्मस्पर्शी रचना…शैलेन्द्र जी
rakeshvar