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१९५८ – मुसाफ़िर – लागी नाही छूटे राम चाहे जिया जाए | 1958 – Musafir – laagi naahi chhute raam, chaahe jiya jaye

लागी नाही छूटे राम, चाहे जिया जाए मन अपनी मस्ती का जोगी, कौन इसे समझाए कौन इसे समझाए, रामा लागी नाही छूटे रामा, चाहे जिया जाए तारों में मुस्कान है तेरी, चाँद तेरी परछाँईं उतने गीत हैं जितनी रातें हमने साथ बिताईं कैसे बोलूँ रे साँवरिया, करूँ मैं कौन उपाय चाहे जिया जाए रिमझिम-रिमझिम बुँदियाँ … Continue reading

१९५८ – मुसाफ़िर – एक आए एक जाए मुसाफ़िर | 1958 – Musafir – ek aaye ek jaye musafir

एक आए, एक जाए मुसाफ़िर, दुनिया एक सराए रे एक आए, एक जाए मुसाफ़िर अलबेले अरमानों के तूफ़ान लेकर आए नादन सौ बरस के सामान लेकर आए और धूल उड़ाता चला जाए एक आए, एक जाए मुसाफ़िर, दुनिया एक सराए रे एक आए, एक जाए मुसाफ़िर दिल की ज़ुबाँ अपनी है, दिल की नज़र भी … Continue reading

१९५८ – मुसाफ़िर – मुन्ना बड़ा प्यारा अम्मी का दुलारा | 1958 – Musafir – munna bada pyara ammi ka dulara

मुन्ना बड़ा प्यारा, अम्मी का दुलारा कोई कहे चाँद, कोई आँख का तारा हँसे तो भला लगे, रोए तो भला लगे अम्मी को उसके बिना कुछ भी अच्छा न लगे जियो मेरे लाल, जियो मेरे लाल तुमको लगे मेरी उमर, जियो मेरे लाल मुन्ना बड़ा प्यारा, अम्मी का दुलारा कोई कहे चाँद, कोई आँख का … Continue reading

१९५८ – मुसाफ़िर – मन रे हरि के गुण गा | 1958 – Musafir – man re, hari ke gun gaa

हरि के गुण गा, मन रे, हरि के गुण गा उन संग प्रीत लगा, मन रे मन रे, हरि के गुण गा जिनके जपे अहल्या तर गई, भवसागर के पार उतर गई सन्मुख शीश झुका, मन रे मन रे, हरि के गुण गा जिनके जपे अमर भई मीरा, नाम उजागर कर गई मीरा लौ उनसे … Continue reading

१९५८ – मधुमती – टूटे हुए ख़्वाबों ने | 1958 – Madhumati – toote hue khwabon ne

टूटे हुए ख़्वाबों ने, हमको ये सिखाया है दिल ने जिसे पाया था, आँखों ने गँवाया है टूटे हुए ख़्वाबों ने हम ढूँढ़ते हैं उनको, जो मिलके नहीं मिलते रूठे हैं न जाने क्यूँ, मेहमाँ वो मेरे दिल के क्या अपनी तमन्ना थी, क्या सामने आया है दिल ने जिसे पाया था, आँखों ने गँवाया … Continue reading

१९५८ – मधुमती – जंगल में मोर नाचा | 1958 – Madhumati – jungle mein mor naacha

जंगल में मोर नाचा, किसीने ना देखा हम जो थोड़ी-सी पीके ज़रा झूमे, हाय रे सब ने देखा जंगल में मोर नाचा, किसीने ना देखा गोरी की गोल-गोल अँखियाँ शराबी कर चुकी हैं कैसे-कैसों की ख़राबी इनका ये ज़ोर-ज़ुल्म किसीने ना देखा हम जो थोड़ी-सी पीके ज़रा झूमे, हाय रे सब ने देखा जंगल में … Continue reading

१९५८ – मधुमती – चढ़ गयो पापी बिछुआ | 1958 – Madhumati – chadh gayo papi bichhua

ओ ओ ओ ओ बिछुआ, हाय रे पीपल छैँया बैठी पलभर भरके गगरिया, हाय रे होय ओय ओय ओय दैय्या रे, दैय्या रे, चढ़ गयो पापी बिछुआ ओ हाय हाय रे मर गई, कोई उतारो बिछुआ दैय्या रे, दैय्या रे, चढ़ गयो पापी बिछुआ कैसो रे पापी बिछुआ, कैसो रे पापी बिछुआ दैय्या रे, दैय्या … Continue reading

१९५८ – मधुमती – सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं | 1958 – Madhumati – suhana safar aur ye mausam haseen

सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं हमें डर है हम खो न जाएँ कहीं सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं ये कौन हँसता है फूलों में छुपकर बहार बेचैन है किसकी धुन पर कहीं गुनगुन, कहीं रुनझुन, कि जैसे नाचे ज़मीं सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं … ये गोरी नदियों का चलना उछलकर कि … Continue reading

१९५८ – मधुमती – हम हाल-ए-दिल सुनाएँगे | 1958 – Madhumati – hum haal-e-dil sunayenge

तुम्हारा दिल मेरे दिल के बराबर हो नहीं सकता वो शीशा हो नहीं सकता, ये पत्थर हो नहीं सकता हम हाल-ए-दिल सुनाएँगे, सुनिए कि न सुनिए सौ बार इसे दोहराएँगे, सुनिए कि न सुनिए हम हाल-ए-दिल सुनाएँगे रहेगा इश्क़ तेरा ख़ाक में मिलाके मुझे हुए हैं इब्तिदा में रंज इंतेहा के मुझे हम हाल-ए-दिल सुनाएँगे … Continue reading

१९५८ – डिटेक्टिव – कल तलक हम ठीक था | 1958 – Detective – kal talak hum theek tha

कल तलक हम ठीक था, आज हमें क्या हो गया दिल भी हमको छोड़के, क्या पराया हो गया कल तलक हम ठीक था, आज हमें क्या हो गया ये मचलती रात आधी, मौसम बेक़रार छुप गया क्यूँ छेड़कर तू मेरे दिल के तार हम इधर है जागता, तुम उधर क्या सो गया दिल भी हमको … Continue reading

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