Songs of Shailendra::
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Kanhaiya

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१९५९ – कन्हैया – दिल में समाके मिलने ना आए | 1959 – Kanhaiya – dil mein samake milne na aaye

सावन आवन कह गए, कर गए कौल अनेक गिनते-गिनते घिस गई, उँगलियों की रेख दिल में समाके, मिलने ना आए कैसे तुम अपने कैसे पराए, हो दिल में समाके, मिलने ना आए तुझे तारों ने देखा, तुझे चँदा ने देखा एक हम ही अभागे, तुझे हमने ना देखा मेरे सपनों में आए, पर ऐसे ना … Continue reading

१९५९ – कन्हैया – मुझे तुमसे कुछ भी ना चाहिए | 1959 – Kanhaiya – mujhe tumse kuchh bhi na chahiye

मुझे तुमसे कुछ भी ना चाहिए, मुझे मेरे हाल पे छोड़ दो मेरा दिल अगर कोई दिल नहीं, उसे मेरे सामने तोड़ दो मुझे तुमसे कुछ भी ना चाहिए मैं ये भूल जाऊँगा, ज़िंदगी कभी मुस्कुराई थी प्यार में मैं ये भूल जाऊँगा, मेरा दिल कभी खिल उठा था बहार में जिन्हें इस जहाँ ने … Continue reading

१९५९ – कन्हैया – याद आई आधी रात को | 1959 – Kanhaiya – yaad aayi aadhi raat ko

याद आई आधी रात को, कल रात की तौबा दिल पूछता है झूमके, किस बात की तौबा याद आई आधी रात को मरने भी न देंगे मुझे, दुश्मन मेरी जाँ के हर बात पे कहते हैं कि इस बात की तौबा याद आई आधी रात को … साक़ी मुझे बतला तो दे, मुँह फेरके मत … Continue reading

१९५९ – कन्हैया – रुक जा ओ जानेवाली रुक जा | 1959 – Kanhaiya – ruk ja o janewali ruk ja

रुक जा, रुक जा ओ जानेवाली रुक जा मैं तो राही तेरी मंज़िल का नज़रों में तेरी मैं बुरा सही आदमी बुरा नहीं मैं दिल का देखा ही नहीं तुझको, सूरत भी न पहचानी तू आके चली छम-से, ज्यूँ धूप के दिन पानी रुक जा, रुक जा ओ जानेवाली … मुद्दत से मेरे दिल के … Continue reading

१९५९ – कन्हैया – ओ मोरे साँवले-सलोने पिया | 1959 – Kanhaiya – o mere sanwale salone piya

ओ मोरे साँवरे सलोने पिया, तोसे मिलने को मचले जिया हमें तरसा ना अब के बरस, दिन बरखा के आए, रसिया पकी निंबुआ अनार, झुकी अंबुवा की डार करे पपीहा पुकार, पिया आजा एक बार कासे मन की कहूँ मैं बतियाँ, मैंने दिल भी है तुझको दिया हमें तरसा ना अब के बरस, दिन बरखा … Continue reading

१९५९ – कन्हैया – नी बलिये, रुत है बहार की | 1959 – Kanhaiya – ni baliye rut hai bahar ki

नी बलिये, रुत है बहार की सुन चन वे, रुत है बहार की देखो आए वो, लेके डोली प्यार की कुछ मत पूछो कैसे बीतीं घड़ियाँ इंतज़ार की नी बलिये, रुत है बहार की सुन चन वे, रुत है बहार की आख़िर सुन ली मनमोहन ने, मेरे मन की बोली अब जाकर हमको पहचानी उनकी … Continue reading

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